Poem: यदि लागू होता संविधान

Poem: यदि लागू होता संविधान

 

गौतम राणे सागर,

न्यूज इंप्रेशन

Lucknow: यदि लागू होता संविधान

गंधारी ब्याह दी गई

नेत्रहीन धृतराष्ट्र संग,

देकर वास्ता विधान का।

उसकी आँखों पर बाँध देना पट्टी,

कहाँ का है न्याय?

पूछता संविधान

तीरंदाजी परीक्षा पास कर अर्जुन ने

द्रौपदी से किया स्वयंवर,

कुंती के आदेश पर बांट ली गई

पांचों भाइयों में, कह विधान।

इसे चारों की लालसा कहें, या आज्ञाकारी पुत्र

क्यों किसी के मुँह से न फूटी आवाज?

कुंती का आदेश बंदूक से निकली गोली था क्या,

जो वापस नही हो सकता था?

पूछता संविधान

अर्जुन; युधिष्ठिर, भीम का अनुज

नकुल, सहदेव का था अग्रज ।

द्रौपदी; युधिष्ठिर और भीम की बेटी,

नकुल और सहदेव की हुई माँ समान ।

तब भी सब की चुप्पी, आखिर क्यों?

पूछता संविधान।

स्त्री होना क्या अभिशाप है,

वह बांट दी जायेगी किसी वस्तु समान?

तब भी जब वह युधिष्ठिर और भीम की बेटी

और नकुल और सहदेव की हो माँ समान?

पूछता संविधान।

कैसे हो सकते हैं युधिष्ठिर धर्मराज

जो लगा दे पांच भाइयों की इकलौती पत्नी

द्रौपदी को चौसर के दांव?

विधान! गढ़ सकता क्षात्र धर्म का प्रपंच।

जो पत्नी की भी रक्षा न कर सके

ऐसे क्षत्रिय को कैसे कहें वीर,लेकिन

विधान! जो स्त्री को समझता है खिलौना

इस निकृष्टता को करेगा महिमामंडित,

संविधान करता दण्डित:

जुआरी को भी और नारी को निर्वस्त्र

करने वाले लम्पट को भी।

नारी अपमान को:

विधान मानता है; अपना निष्कंटक एकाधिकार,

संविधान देता है; नारी सम्मान को कानूनी अधिकार।

कुल परंपरा के नाम करने वाले अत्याचार

होते पाँचों भाई और मां जेल के पीछे।

यदि लागू होता संविधान!

 

(गौतम राणे सागर, राष्ट्रीय संयोजक,

संविधान संरक्षण मंच)


Posted

in

by

Tags:

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *