Ambedkar Row: केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने संविधान निर्माता बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के नाम को जो लेकर संसद सत्र के दौरान टिप्पणी की, वह उनके घटिया सोच के ही परिणाम को दर्शाता है।
अलखदेव प्रसाद ’अचल’
न्यूज़ इंप्रेशन, संवाददाता
Patna/Aurangabad: जिस तरह से केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने संविधान निर्माता बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के नाम को जो लेकर संसद सत्र के दौरान टिप्पणी की, वह उनके घटिया सोच के ही परिणाम को दर्शाता है। क्योंकि जिस बाबा साहब के संविधान से हमारा देश चल रहा है, जिस बाबा साहब को देश-दुनिया सम्मान की नजरों से देखता है, उस बाबा साहब पर अमित शाह द्वारा यह कहना कि लोग अंबेडकर, अंबेडकर, अंबेडकर की रट लगाए हुए हैं। अगर उस तरह की रट भगवान राम का नाम लेने में लगाते, तो सात जन्म तक स्वर्ग का सुख भोगते। अमित शाह का सीधा कहने का तात्पर्य रहा कि अंबेडकर क्या हैं, जो लोग अंबेडकर का नाम लेते रहते हैं? क्योंकि अमित शाह के लिए तो गोड्से, हेडगेवार और सावरकर सब कुछ हैं। जैसे उनलोग देश को टुकड़ों में बांटना चाहते थे, उसी प्रकार इनलोग भी हिन्दू मुसलमान कर देश को टुकड़ों में बांटना चाहते हैं। फिर बाबा साहब भीमराव अंबेडकर इन्हें सुनायेंगे, तो कैसे सुहायेंगे?
परवाह है तो सिर्फ अपनी सत्ता की परवाह
आश्चर्य होता है कि इस तरह का घटिया सोच रखने वाला व्यक्ति हमारे देश का गृह मंत्री बन बैठा है। जिसको कुछ भी समझ नहीं है, जो चाहे, जब चाहे कुछ भी बोल सकता है। जिसे देश की परवाह नहीं है। परवाह है तो सिर्फ अपनी सत्ता की परवाह है। अमित शाह ने जो यह कहा कि अगर उतना नाम लोग राम का लेते तो स्वर्ग का सुख भोगते, तो हम वैसे घटिया सोच रखने वाले गृह मंत्री से पूछना चाहते हैं कि तुम जो गृह मंत्री बने हो, वह संविधान से बने हो, न कि राम की कृपा से बने हो।राम में प्रधानमंत्री और गृहमंत्री बनाने की क्षमता नहीं है।राम तो सिर्फ तुम जैसे राजनीतिज्ञों के लिए वोट बटोरने का जरिया है। अन्यथा राम में शक्ति होती, तो राममंदिर बनाने के लिए न्यायालय का दरवाजा खटखटाना नहीं पड़ता। बाबा साहब के संविधान की शरण में जाना नहीं पड़ता। वैसे राम से स्वर्ग सुख भोगने की अपेक्षा तो शाह जैसा कोई मूर्ख लोग ही रख सकता है।
देश के कोने-कोने में निंदा
दरअसल अमित शाह जैसे लोग बीच-बीच में इस तरह का बयान देकर यह देखना चाहते हैं कि ऐसे बयान पर क्या प्रतिक्रिया होती है? लोग चुप्पी साध लेते हैं कि बवाल मचाते हैं। फिर जैसा होगा, उसी तरह से बातें बदल दी जाएगी। यह सबकुछ सुनियोजित रहता है। क्योंकि भाजपा सरकार तो मनुस्मृति लागू करने का पक्षधर है। दलितों पिछड़ों और आदिवासियों को तो सिर्फ वोट के लिए इस्तेमाल करना चाहती है। जब अमित शाह के बयान पर पूरे देश के कोने-कोने में बवाल मचाना शुरू हुआ। उसकी निंदा होने लगी। उसके पुतले जलाए जाने लगे। उसकी कटु भर्त्सना की जाने लगी, तब एक बार फिर घटिया सोच का प्रयोग करते हुए अमित शाह ने यह कहा कि हमारे बयानों को तोड़-मरोड़ कर विपक्ष पेश कर रहा है। अरे भाई, तुम्हारे बयान तो वहां के रिकॉर्ड में तक दर्ज़ हो गया है। देश के कोने- कोने के लोग सुन चुके हैं। तुम्हारी नीयत समझ चुके। फिर तोड़ने- मरोड़ने का सवाल ही कहां उठता है?
उनके ही गठबंधन के नेता बयान पर नहीं लिया पक्ष
और तो और, उनके ही गठबंधन के लोग में नीतीश कुमार जी जैसे कई दल के नेता हैं, जो इस बयान पर उनका पक्ष नहीं लिया। उल्टे नीतीश कुमार जी जैसे लोग तो अपनी प्रगति यात्रा के दौरान बुद्ध और अंबेडकर की तस्वीर के सामने हाथ जोड़े देखे गए। जो यह संकेत दे गए कि अगर अमित शाह अंबेडकर के विरोध में हैं, तो हम अंबेडकर के साथ हैं। खुद बीजेपी वाले को भी लगने लगा कि अमित शाह अंबेडकर का अपमान कर बुरी तरह से फंस चुके हैं। उसकी भरपाई करने के लिए एनडीए की बैठक बुलाई गयी। लेकिन वहां न प्रधानमंत्री पहुंच सके, न नीतीश कुमार, चिराग पासवान न जयंत चौधरी ही पहुंच सके। क्योंकि यह लोग जानते हैं कि अंबेडकर का अपमान कर इस देश में सत्ता में नहीं रहा जा सकता है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी अंबेडकर के काटते हैं कसीदे
Leave a Reply